Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer | सड़क की बात प्रश्न का उत्तर

यदि आप आगामी HSLC Final Exam 2024 में Class 10 Hindi में 100% Mark प्राप्त करना चाहते हैं, तो Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer पर यह लेख आपकी बहुत मदद कर सकता है।

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जैसे-जैसे HSLC Final Exam आती हैं, छात्र अक्सर अध्ययन करने के लिए आवश्यक सामग्री की मात्रा से अभिभूत महसूस करते हैं। Class 10 Hindi (Elective Subject) एक ऐसा विषय है जिसके लिए बहुत अभ्यास और समर्पण की आवश्यकता होती है, और छात्र अक्सर इस परीक्षा में अच्छा स्कोर करने के लिए संघर्ष करते हैं। इस लेख में, हम आपको कुछ टिप्स और ट्रिक्स प्रदान करेंगे जो आपको अपनी Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer (सड़क की बात प्रश्न का उत्तर) परीक्षा में अच्छा स्कोर करने में मदद करेंगे।

Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer 2024

यहां Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer पर इस पोस्ट में, हमने HSLC 2024 Final Exam के लिए बहुत छोटे प्रकार के प्रश्न उत्तर (Vert Short Type Question Answer), लंबे प्रश्न उत्तर (Long Type Question Answer) और एक अन्य व्याकरण से संबंधित प्रश्न उत्तर जोड़ा है।

Class 10 Hindi Chapter 5 Question Answer

एक शब्द में उतर दो

(क) गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर किस आख्या से विभूषित है ?
उत्तर : गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर “विश्वकवि” आख्या से विभूषित है।

(ख) रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी के पिता का नाम क्या था ?
उत्तर : रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी के पिता का नाम था देवेन्द्रनाथ ठाकुर ।

(ग) कौन-सा काव्य-ग्रंथ रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की कीर्ति का आधार-स्तंभ है ?
उत्तर : कवि शिरोमणि रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की कीर्ति का आधार-स्तंभ है उनका काव्य-ग्रंथ ‘गीतांजलि’ |

(घ) सड़क किसकी आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही है ?
उत्तर : सड़क शाप की आखिरी घड़ियों का इंतजार कर रही है।

(ङ) सड़क किसकी तरह सब कुछ महसूस कर सकती है ?
उत्तर : सड़क अंधे की तरह सबकुछ महसूस कर सकती है।

पूर्ण वाक्य में उत्तर दो

(क) कवि-गुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी का जन्म कहाँ हुआ था ?
उत्तर : कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी का जन्म कोलकाता के जोरासाँको मे हुआ था ।

(ख) गुरुदेव ने कब मोहनदास करमचँद गाँधी को ‘महात्मा’ के रुप में संबोधित किया था ?
उत्तर : गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा निर्मित बंगाल के शैक्षिक सांस्कृतिक केन्द्र “शांतिनिकेतन में आने पर मोहन दास करमचँद गाँधी को आपने “महात्मा” के रूप में संबोधित किया था ।

(ग) सड़क के पास किस कार्य के लिए फुर्सत नही है ?
उत्तर : सड़क के पास अपनी कड़ी और सूखी सेज पर एक मुलायम हरी घास या दूब डालना था अपने सिरहाने के पास एक छोटा सा नीले रंग का वनफूल खिलवाने के लिए फुर्सत नहीं है ।

(घ) सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना किससे की है ?
उत्तर : सड़क ने अपनी निद्रावस्था की तुलना चिर निद्रित सुदीर्घ अजगर के साथ की है ।

(ङ) सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर क्या नही डाल सकती ?
उत्तर : सड़क अपनी कड़ी और सूखी सेज पर मुलायम हरी घास या दूब डाल नही सकती।

अति संक्षिप्त उत्तर दो

(क) रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी की प्रतिभा का परिचय किन क्षेत्रों में मिलता है ?
उत्तर : विश्वभर के महान व्यक्तियों में से रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी भी एक प्रातः स्मरणीय व्यक्ति है। आपकी प्रतिभा का परिचय मुख्यतः काव्य जगत में व्यपक है। आपने कई हजार कविताओं, गीतों, कहानियों रुपकों एवं निबंध की रचना की। आपने उपन्यास भी लिखे है। ‘गीतांजली’ काव्य पर आपको नोबेल पुरस्कार भी मिला है। आपकी ‘काबुलीवाला’ शीर्षक कहानी विश्व प्रसिद्ध है। तदुपरांत “गोरा” और “घरे-बाइरे” उपन्यास विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।

कविगुरु ठाकुरजी वहुमुखी प्रतिभा के धनी थे । साहित्य क्षेत्र के अलावा आप एक प्रसिद्ध शिक्षाविदभी थे। समाज सुधार से लेकर चित्र, संगीत, रुपक आदि दिशाओं तक आपकी प्रतिभा का छाप है। आपके द्वारा बनाई गई ‘शान्तिनिकेतन’ प्रतिभा का स्वाक्षर हमेशा के लिए रहेगी ।

(ख) ‘शान्तिनिकेतन’ के महत्व पर प्रकाश डालो।
उत्तर : ‘शान्तिनिकेतन’ कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी द्वारा स्थापित एक शैक्षिक-सांस्कृतिक केन्द्र है। अभी यह केन्द्र विश्व भारती विश्वविद्यालय के रूप में प्रसिद्ध है। भारतवर्ष के विभिन्न राज्य के अनेक विद्यार्थी उन्नत शिक्षा लेने के लिए शांतिनिकेतन में आते हैं। यहाँ पर्यायक्रम चित्रशिल्प, संगीत, नृत्य आदि विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है ।

(ग) सड़क शाप-मुक्ति की कामना क्यों कर रही है ?
उत्तर : सड़क स्वयं को एक शाप से ग्रस्त समझती है जिस कारण वह हमेशा से स्थिर है, अविचल है। इस शाप के कारण ही वह बहुत दिनों से बेहोशी की नींद सो रही है। सड़क़ अपनी इस स्थिरता को समाप्त करना चाहती है। इसलिए वह शाप मुक्ति की कामना कर रही है ।

(घ) सुख को घर-गृहस्थी वाले व्यक्ति के पैरों की आहट सुनकर सड़क क्या समझ जाती है ?
उत्तर : सुख की घर-गृहस्थी वाले व्यक्ति के पैरों की आहट सुनकर सड़क यह महसूस करती है कि वे हर कदम पर सुख की तस्वीर खीचता है, आशा के बीज बोता है। अर्थात उनके जीवन में खुशियाँ ही खुशियाँ है।

(ङ) गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुनने पर सड़क को क्या बोध होता है ?
उत्तर : गृहहीन व्यक्ति के पैरों की आहट सुननेपर सड़क को यह बोध होता है कि उसके पदक्षेप में न आशा है, न अर्थ है, उसके कदमो में न दायाँ है, न बायाँ है, अर्थात उसके कदमों में निराशा और निरर्थकता भरा है।

(च) सड़क अपने ऊपड़ पड़े एक चरण-चिह्न को क्यों ज्यादा देर तक नहीं देख सकती ?
उत्तर : सड़क अपने ऊपड़ परे एक चरण चिह्न को ज्यादा देर तक देख नहीं सकती क्योंकि नए नए पाँब आकर पुराने चिह्नों को पोछ जाते है। जा चला जाता है वह तो पीछे कुछ छोड़ ही नहीं जाता। समाप्ति और स्थायित्व का अगर थोड़ा कुछ मिलता तो वह भी हजारो चरणों के तले लगातार कुचला जाकर कुछ ही देर में वह धूल में मिल जाता है।

(छ) बड़ों के कोमल भावों के स्पर्श से सड़क में कौन-से मनोभाव बनते हैं ?
उत्तर : बच्चों के छोटे छोटे कोमल पाव के स्पर्श को पाकर सड़क बहुत प्रसन्न अनुभव करती है। लेकिन इसके बदले नन्हे बच्चों को देने के लिए सड़क के पास कुछ नहीं है। उस समय सड़क को कुसुम कली के समान कोमल होने की साध होती है ताकि सड़क पर चलने में यो खेलने कुदने में बच्चों को कोई कठिनाई न हो ।

(ज) किसलिए सड़क को न हँसी है, न रोना ?
उत्तर : सड़क को इसलिए न हँसी है न रोना कि उस पर ही अमीर और गरीब, जन्म और मृत्यु सब कुछ प्रतिदिन नियमित रूप से चलता रहा है यद्यापि सड़क अपने को सुख दुःख से परे रखती है और खुद-अकेली पड़ी रहती है वेहौशी की तरह ।

(झ) राहगीरों के पाँवों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में सड़क ने क्या कहा है ?
उत्तर : राहगीरों के पावों के शब्दों को याद रखने के संदर्भ में सड़क कहती है कि उस पर निरंतर अनेक चरण लगातार चलते रहते है। किसी चरण स्पर्श जो स्थायित्व नही रहती। सड़क कहती है कि वह सबको भलीभाती पहचानती है पर याद नहीं रख पाती कि वे कहाँ चले जाते है और फिर वापस नहीं आते। तथापि दो एक कोमल स्पर्श जो पिता का आशीर्वाद और माता का स्नेह से भरा हुआ हो और मेरी धूल को अपना घर बना लेते हो– सिर्फ उन पाँवोकी याद कभी आ जाती है । पर इनके लिए शोक या संताप करने की घड़ी भी छुट्टी नहीं मिलती।

संक्षिप्त उत्तर दो

(क) जड़ निद्रा में पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श उनके बारे में क्या-क्या समझ जाती है ?
उत्तर : जड़निद्रा में पड़ी सड़क लाखों चरणों के स्पर्श से यह महसूस करती है कि कौन लोग घर जा रहा है, कौन परदेश जा रहा है, कौन काम से जा रहा है, कौन आराम करने जा रहा है। कौन उत्सव में जा रहा है और कौन श्मशान को जा रहा है। वह आपने ऊपर से गुजरनेवाले लोगो की सुख-दुख की कहानी पढ़ लेती है। वह जानती है कि चरणों के नया स्पर्श पुराने स्पर्श को मिटा देता है। सड़क यह भी महसूस करती है कि लोग उसके ऊपर ही लक्ष की और चलते है पर उसके प्रति कभी भी कृतज्ञता का प्रकर नहीं करता बल्कि तिरस्कार ही मिलता ।

(ख) सड़क संसार की कोई भी कहानी क्यों पूरी नहीं सुन पाती ?
उत्तर : सड़क सैकड़ों, हजारों वर्षों से लाखों-करोड़ों लोगों की हँसी, गीत, और बातें सुनती आई है। पर कोई भी कहानी को पुरा नहीं सुन पाती है। इसका कारण यह है कि किसी आदमी की थोड़ी सी बात सुनने के बाद फिर जब सड़क दोवाड़ा कान लगाती तो उस आदमी का जीवन तबतक सम्पांत ही हो जाता है। इससे वह सावित होता है कि सड़क के जीवन में जो स्थिरता है वह स्थिरता मनुष्य जीवन में नहीं है। इसलिए सड़क के पास टूटी-फूटी बातें और बिखरे हुए गीत अनेक है मगर कोई पूरी कहानी नहीं है जो सड़क सुन सकती।

(ग) “मै किसी का भी लक्ष्य नहीं हूँ। सबका उपाय मात्र हूँ।”. – सड़क ने ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर : सड़क को यही संताप सताता रहता है कि किसी भी लोग उस पर कदम रखना नहीं चाहता, प्रसन्नतापूर्वक खड़ा रहना पसन्द नहीं करता। सड़क ने परम धैर्य के साथ किसी को उनके घर के द्वार पहुँचाती है तो किसी को उत्सवो की जगह और किसी को श्मशान पहुँचाती है। मगर इसके बदले लोग उसे तिरस्कार ही करते है। इसलिए सड़क कतही है कि “मैं किसी का भी लक्ष्य नहीं सबका उपाय मात्र हूँ”।

(घ) सड़क कब और कैसे घर का आनंद कभी-कभी महसूस करती ?
उत्तर : सड़क कभी कभी घर का आनन्द महसूस करती है। जब छोटे छोटे बच्चे हँसते हँसते उसके पास आते है और शोरगुल मचाते हुए उसके पास आकर खेलने लगते तब महसूस करती है कि वे धूल में पिता का आशीर्वाद और माता का स्नेह और प्यार छोड़ जाते हैं। वे धूल को ही अपने वश में कर लेते है और कोमल हाथो से हौले हौले थपकिया दे देकर उसे सुलाना चाहते है। अपना निर्मल हृदय लेकर बैठे-बैठे वे उसके साथ बाते करते है ।

(ङ) सड़क अपने ऊपर से नियमित रूप से चलने वालों की परीक्षा क्यों करती है ?
उत्तर : सड़क अपनी ऊपर से नियमित रूप से चलनेवालो को अच्छी तरह पहचानती है। वह कल्पना करती है कि किस प्रकार एक थका हुआ व्यक्ति संध्या समय आकाश की भाँति म्लान दृष्टि से किसी के मुँह की ओर देख घर लौटता है। सड़क उसे घर तक पहुचाने मे मदद करती है।

सम्यक् उत्तर दो

(क) सड़क का कौन-सा मनोभाव तुम्हे सर्वाधिक हृदयस्पर्शी लगा और क्यों ?
उत्तर : सड़क का वह मनोभाव मुझे सर्वाधिक हृदय स्पर्शी लगा कि बच्चो के कोमल पावों के लिए वह अपने को बहुत कठोर समझती और खुद कोमल कली बन जाने की कामना करती है ताकि उन्हें कठिनाई न हो यद्यापि सड़क अपनी विवशता और जड़ता के कारण बना नही दे पाती। बच्चो के इतने स्नेह और प्यार को पाकर भी जवाब नहीं दे पाती ।

लेखक रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने इसके जरिए सड़क जैसी जड़ था निर्जीव बस्तु को इतना सजीव और चेतन रुप दिया जो मनुष्य की तरह सुख-दुःख को अनुभव कर सकती। इसलिए यह मुझे बहुत हृदयस्पर्शी लगा है।

(ख) सड़क ने अपने बारे में जो कुछ कहा है, उसे संक्षेप प्रस्तुत करो।
उत्तर : सड़क महसूस करती है कि वह शाप से ग्रस्त होने के कारण स्थिर और अविंचल है। वह अन्य चेतन प्राणियों की तरह चलना चाहती है, बोलना चाहती है। सड़क उसके ऊपर चलनेवाले लोगो की सुख-दुःख को जानती है पर वे उसे कभी भी लक्ष नही मानता, उसे कृतज्ञता नहीं दिखाता। वह केवल लक्ष तक पहुँचानेवाली उपाय मात्र है। कोई भी प्रसन्नतापूर्वक पाँव नहीं रखना चाहता ।

सड़क को दुःख है कि वह नन्हें बालकों का स्नेह और प्यार पाकर भी उसका उत्तर देने में असमर्थ है। वह कहती है कि जो लोग लक्ष तक जाने के लिए ठकाहुवा है और मदद के लिए किसी की ओर मुह देखते हुए रहते है उन्हें घर पहुँचाने में प्रतीक्षा करती है। लोगों के जन्म और मृत्यु आदि क्रियाकलाप से वह हमेशा अपने को परे रखती है। उसके लिए रोक या संताप करने की छुट्टी ही नहीं है। वह केवल अकेली पड़ी रहती है बिना किसी व्यक्ति की हँसी और रोने की याद से ।

(ग) सड़क की बातों के जरिए मानव जीवन की जो बातें उजागर हुई है, उन पर संक्षिप्त प्रकाश डालो ।
उत्तर : सड़क की बातों के जरिए उजागर हुई मानव जीवन की कई महत्वपूर्ण बातों का विवरण नीचे दिए गए है।’मानव चेतन और सजीव प्राणी है। हर एक का लक्ष अलग अलग है। अपने कर्म के अनुसार उन्हें फल मिलता है। जिस व्यक्ति के पास सुख की घर है, स्नेह की छाया है वे आशा के बोज बोता है और जिसके पास नहीं वे निराशा और निरर्थक जीवन गुजरते है। मनुष्य जीवन की ये आशा-निराशा, सुख-दुख और सार्थकता-निरर्थकता का हिसाव भी असम्पूर्ण रहा है कभी भी इसकी स्थिरता और समाप्ति नही रही, क्योंकि मानव जीवन के पुराने आदर्श को हँसी-खुशी को नये लोगों के कर्म-आदर्श की चरणस्पर्ष मिटा देती है।

आशा-आकांखा की प्राप्ति और निराशा की समाप्ति के लिए मानव लड़ाई करती आई है। पर सभी का कर्म अधूरी रहती है। किसी भी लोग अपनी कर्मपूर्ति के लिए मृत्यु लोक से लौट नहीं आते। तथापि लोग समाप्ति और स्थायित्व के लिए कुछ न कुछ कर्म में लगे रहे है। समय बदलने के साथ साथ आशीर्वाद और अभिशाप का रंग भी धूल में मिल जाता है।

मनुष्य सामाजिक प्राणी है। कोई भी व्यक्ति दूसरों की सहायता विना अपनी लक्ष तक नहीं पहुँच जाति । सामाजिक विच्छेद के कारण लोग एक दूसरो को प्यार के बदले घृणा करती है, कृतज्ञता दिखाने के बदले कृतघ्न होते है और मदद देने के बदले बांधक बन जाते है। व्यक्ति के ऐसे आचरणों के कारण एक सर्व समाज नीरव हो जाते है, गरीब अमीर बन जाते है और अमीर भी गरीब बन जाते समाप्ति में अमीर हो या गरीब हो धूल के स्रोत की तरह उड़ता जाता है।

सप्रसंग व्याख्या करो

(क) “अपनी इस गहरी जड़ निद्रा में लाखों चरणों के स्पर्श से उनके हृदयो को पढ़ लेती हूँ।”
उत्तर : यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक “आलोक भाग-२ के अंतर्गत ‘विश्वकवि, गीतकार, निबंधकार से लेकर बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी का आत्मकथात्मक निबंध “सड़क की बात” शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसमें निबंधकार कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर जी ने सड़क जैसी निर्जीव वस्तु को सजीव के समान सुख-दुख का अनुभव करने वालों के रूप में दिखाना चाहता है।

कविगुरु के अनुसार सड़क भी अंधे की तरह सब कुछ महसूस कर सकती है। वह अभिशप्त होकर गहरी जड़ निद्रा में पड़ी पड़ी उसके ऊपर चलनेवाले लोगों के पैरों की ध्वनि या आहट दिन-रात सुनती आई है और उसके हृदयों को जान लेती है कि कौन घर जा रहा है, कौन परदेश जा रहा है, कौन उत्सव में जा रहा है, और कौन श्मशान को जा रहा है। इस प्रकार गुरुजी ने हर एक मनुष्य के लक्ष तक पहुँच जाने में मदद देनेवाला सड़क को चेतन प्राणी के समान मान लिया है। इसमें कविगुरु ठाकुर जी की सूक्ष्म तथा पैनी दृष्टि का झलक मिल गया है।

(ख) “मुझे दिन-रात यही संताप सताता रहता है कि मुझ पर कोई तबीयत से कदम नहीं रखना चाहता।
उत्तर : यह पंक्तियां हमारी पाठ्यपुस्तक आलोक-भाग-२ के अंतर्गत सड़क की बात’ शीर्षक रवीन्द्रनाथ ठाकुर विरचित आत्मकथात्मक निबंध से लिया गया है। हम कथन के जरिए निबंधकार ठाकुर जी ने सड़क किस प्रकार मनुष्य के अकृतज्ञता का स्वीकार बन गया है उसे दिखाना चाहता है ।

लोग सड़क के ऊपर ही चलते हुए अपनी लक्ष तक पहुँच जाती है। सड़क के बिना लोग अपनी लक्ष की और नही चल सकते। ‘दराचल इसके लिए लोग सड़क को बधाई देना चाहिए, कृतज्ञता का प्रकट करना चाहिए, पर लोग उसे कोसते है, तिरस्कार करते है, किसी भी लोग सड़क को उसकी मदद के लिए कृतज्ञता का नाम नहीं लेता। मनुष्य के इस आचरण के लिए सड़क को संताप सताता रहता है ।

जो परम धैर्य के साथ लोगों को उनके घर के द्वार तक पहुँचाती है उस पर लोग तबीयत से कदम नहीं रचना चाहता। यह सोचकर सड़क को बहुत दुःख लगी है जो उसे दिन-रात सताता रहता है। ठाकुर जी ने इस उक्ति के जरिए सड़क जैसी निर्जीव वस्तुको सजीव के समान अनुभवशील बनाकर मानवीकरण किया है।

(ग) “मै अपने ऊपर कुछ भी पड़ा रहने नही देती, न हँसी, न रोना सिर्फ में ही अकेली पड़ी हुई हूँ और पड़ी रहूँगी।
उत्तर : यह पंक्तिया हमारी पाठ्य पुस्तक आलोक भाग-२ के अन्तर्गत कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर विरचित “सड़क की बात” शीर्षक आत्मकथामुलक निबंध से लिया गया है ।

इसमें लेखक ठाकुर जी ने सड़क का मानवीकरण करते हुए उस पर पड़नेवाले सुख दुख या हँसी-रोने की हक पर प्रतिक्रिया व्यक्त किया है।

सड़क महसूस करती है कि उसे निरन्तर जड़ और स्थिर रहने का शाप मिला हुआ है। उस पर चलनेवाले चाहे अमीर हो या गरीब सभी लोगों ने अपना हक समान रूप से प्राप्त किया है। उन लोगों के जन्म और मृत्यु आदि क्रियाकलाप भी सड़क द्वारा ही संभव है पर सड़क इन हँसी रोने को अपना पास रखना नही चाहता । जिसने मनुष्य को लक्ष तक पहुँचने में मदद करती है-उससे मनुष्य कही भी मित्रता का सम्बंध स्वीकार नहीं किया । अतः सड़क अपने को मनुष्य के सुख दुख से परे रखती है और स्वयं ही अकेली पड़ी रहती है तथा पड़ी रहेंगी।

1. निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह करके समास का नाम लिखो : दिन-रात, जड़निद्रा, पगध्वनि, चौराहा, प्रतिदिन, आजीवन, अविल, राहखर्च, पथभ्रष्ट, नीलकंठ, महात्मा, रातोरात
उत्तर:

दिन-रातदिन और रातद्वन्द्व समास
जड़निद्राजड़ है जो निद्राकर्मधारय
पगध्वनिपग की ध्वनिसम्बंध तत्पुरुष
चौराहाचार राहों का समाहारद्विगु
प्रतिदिनदिन-दिनअब्ययीभाव
आजीवनजीवन पर्यन्तअव्ययीभाव
राहखर्चराह के लिए खर्चसम्प्रदान तत्पुरुष
पथभ्रष्टपथ से भ्रष्टअपादान तत्पुरुष
नीलकंठनीला है कंठ जिसका (शिव)बहुव्रीहि
महात्मामहान है जो आत्माकर्मधारय
रातोरातरात ही रातअब्ययीभाव

2. निम्नांकित उपसर्गों का प्रयोग करके दो दो शब्द बनाओ: परा, अप, अधि, उप, अभि, अति, सु, अव
उत्तर:

परापराजय, पराधीन
अपअपमान, अपशब्द
अधिअधिकार, अधिकांक्ष
उपउपमन्त्री, उपनाम
अभिअभिशाप, अभिलाष
अतिअति सुंदर, अति अतभूत
सुसुहाग, सुर्य
अवअवगुण, अवगत

3. निम्नलिखित शब्दों से उपसर्ग को अलग करो : अनुभव, बेहोश, परदेश, खुशबू, दुर्दशा, दुस्साहस, निर्दय―
उत्तर :

अनुभव―अनु।
परदेश―पर।
दुर्दशा―दुः।
निर्दय―नि।
बेहोश―बे।
खुशबू―खुश।
दुस्साहस―दुः।

4. निम्नलिखित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखो : सड़क, जंगल, आनंद, घर, संसार, माता, आँख, नदी
उत्तर :

  • सड़क―पथ, राह ।
  • जंगल―विपिन, अरण्य ।
  • संसार―दुनिया, जगत ।
  • आनंद―हर्ष, प्रसन्न ।
  • घर―आलय, गृह ।
  • माता―माँ, मातृ ।
  • आँख―नयन, नेत्र ।
  • नदी―प्रवाहिनी, सरिता ।

5. विपरीतार्थक शब्द लिखो : मृत्यु, अमीर, शाप, छाया, जड़, आशा, हँसी, आरंभ, कृतज्ञ, पास, निर्मल, जवाब, सूक्ष्म, धनी, आकर्षण ।
उत्तर :

  1. मृत्यु ― जन्म।
  2. अमीर―गरीब।
  3. शाप―वरदान।
  4. छाया―काया।
  5. जड़―चेतन।
  6. आशा―निराशा।
  7. हँसी―क्रन्दन।
  8. आरंभ―अन्त।
  9. कृतज्ञ―कृतघ्न।
  10. पास―नापास।
  11. निर्मल―मलिन।
  12. जवाब―प्रश्न।
  13. सूक्ष्म―स्थूल।
  14. धनी―निधंनी।
  15. आकर्षण―विकर्षण ।

6. सन्धि विच्छेद करो: देहावसान, उज्वल, रवीन्द्र, सूर्योदय, सदैव, अत्याधिक, जगन्नाथ, उच्चारण, संसार, मनोरथ, आशीर्वाद, दुस्साहस, नीरस ।

उत्तर :

  • देहावसान = देह + अवसान।
  • उज्वल = उत् + ज्वल ।
  • रबीन्द्र = रवि + ईन्द्र ।
  • सूर्योदय = सूर्य + उदय ।
  • अत्यधिक = अति + अधिक ।
  • उच्चारण = उत् + चारण ।
  • मनोरथ = मनः + रथ ।
  • दुस्साहस = दुः+ साहस ।
  • सदैव = सदा + एव ।
  • जगन्नाथ = जगत् + नाथ ।
  • संसार = सम + सार ।
  • आशीर्वाद = आशीः + वाद ।
  • नीरस = निः + रस ।

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